पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने जांच एजेंसियों द्वारा आरोपियों से लंबे समय तक पूछताछ किए जाने के खिलाफ आवश्यक व्यवस्था बनाए जाने की वकालत की है।
न्यायमूर्ति महाबीर सिंह सिंधु की पीठ ने आगामी विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस उम्मीदवार और सोनीपत से मौजूदा विधायक सुरेन्द्र पंवार की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “…यह सराहनीय होगा कि संयुक्त राष्ट्र संगठन (यूएनओ) द्वारा निर्धारित बुनियादी मानवाधिकारों के अनुसार आरोपियों की निष्पक्ष जांच के लिए कुछ आवश्यक तंत्र स्थापित किया जाए, बजाय इसके कि एक दिन में इतनी लंबी अवधि के लिए अनावश्यक उत्पीड़न किया जाए।” पंवार ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा 20 जुलाई को की गई अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी है।
सोमवार को हाई कोर्ट ने उनकी गिरफ़्तारी को अवैध घोषित कर दिया था और आखिरकार बुधवार को उन्हें हिरासत से रिहा कर दिया गया। अगस्त में उनकी गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर विस्तृत फ़ैसला बुधवार को जारी किया गया।
अदालत की यह टिप्पणी ईडी के इस खुलासे पर आई कि जब वह 19 जुलाई, 2024 को सुबह 11 बजे गुरुग्राम में एजेंसी के समक्ष पेश हुए थे और उनसे 1.40 बजे (20 जुलाई) तक 14 घंटे 40 मिनट तक लगातार पूछताछ की गई थी।
पीठ ने कहा, “..(लगातार पूछताछ का कार्य) ईडी की ओर से वीरतापूर्ण नहीं है; बल्कि यह एक इंसान की गरिमा के खिलाफ है। भविष्य के लिए, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जनादेश के मद्देनजर, यह अदालत यह देख रही है कि प्रवर्तन निदेशालय सुधारात्मक उपाय करेगा और अधिकारियों को इस तरह के मामलों में संदिग्ध(यों) के खिलाफ एक बार में जांच के लिए कुछ उचित समय सीमा का पालन करने के लिए संवेदनशील बनाएगा।”
कानून के तहत गिरफ्तारी उचित नहीं: हाईकोर्ट
न्यायमूर्ति महाबीर सिंह सिंधु की पीठ ने यह मानते हुए कि पंवार की गिरफ्तारी और गिरफ्तारी का आधार “कानूनी रूप से अक्षम्य” है, कहा कि प्रथम दृष्टया उन्हें किसी भी तरह से किसी भी अवैध गतिविधि में शामिल नहीं पाया गया है, जो धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत धन शोधन के अपराध को आकर्षित करता हो।
इसमें आगे कहा गया कि मामले का आधार अवैध खनन है और सभी नौ प्राथमिकियों में बाकी आरोप अवैध खनन से संबंधित “परिधीय” हैं।
इसमें कहा गया है, “हालांकि अवैध खनन खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत अपराध है, लेकिन इसे पीएमएलए के तहत अनुसूचित अपराध के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, इसलिए इस आधार पर मुकदमा चलाने से मना किया जाता है।” इसमें यह भी कहा गया है कि पंवार का नाम पहली आठ एफआईआर में नहीं था और उनका नाम नौवीं एफआईआर में भी नहीं है।