बॉम्बे हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने बदलापुर यौन उत्पीड़न के आरोपी की मौत से संबंधित महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं, जिसकी मौत तलोजा जेल से बदलापुर पुलिस स्टेशन ले जाते समय पुलिस वैन में हुई थी। जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा, “यह विश्वास करना बहुत कठिन है कि आरोपी जैसे कम कद के व्यक्ति को वैन के अंदर बैठे चार पुलिसकर्मी काबू नहीं कर पाए, जब वह हिंसक हो गया।” आरोपी अक्षय शिंदे की हत्या कैसे हुई, इस बारे में पुलिस के बयान पर सवाल उठाते हुए पीठ ने कहा, “हम सच जानना चाहते हैं। हमें पुलिस द्वारा की गई गतिविधियों पर दूर-दूर तक संदेह नहीं है। लेकिन हमें सच बताना चाहिए।” जस्टिस चव्हाण ने कहा, “क्या आपने कभी पिस्तौल का इस्तेमाल किया है? मैंने 100 बार गोली चलाई है। इसके लिए ताकत की जरूरत होती है…एक आम आदमी पिस्तौल नहीं चला सकता, जब तक कि उसे प्रशिक्षित न किया जाए। कोई भी टॉम, डिक और हैरी रिवॉल्वर से गोली चला सकता है, लेकिन पिस्तौल से गोली चलाने के लिए ताकत की जरूरत होती है, जब तक कि वह ऑस्ट्रिया में बनी न हो। एक कमजोर आदमी स्लाइड को पीछे नहीं कर सकता…इसे मुठभेड़ नहीं कहा जा सकता। मुठभेड़ की परिभाषा अलग है।”
खंडपीठ मृतक के पिता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें शिंदे की हत्या की परिस्थितियों की एसआईटी जांच की मांग की गई थी। पीठ ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि उसे बिल्कुल नजदीक से गोली मारी गई…हमें घटना की निष्पक्ष जांच की जरूरत है, भले ही इसमें पुलिस शामिल हो।” चूंकि मामले की जांच सीआईडी कर रही है, इसलिए उच्च न्यायालय ने पुलिस को सभी दस्तावेज और सबूत जांच दल को सौंपने का निर्देश दिया। इस बीच, सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन और विपक्षी महा विकास अघाड़ी नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप लगे। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने सीएम को “धर्मवीर” बताते हुए होर्डिंग, बैनर, पोस्टर और अखबारों में विज्ञापन लगाए, जबकि भाजपा के पोस्टरों में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को “बदला पूरा” (अर्थात बदला लिया गया) कहते हुए दिखाया गया।
मुंबई में मौजूद एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘भाजपा के पोस्टरों और बैनरों से अब यह साफ हो गया है कि राज्य सरकार को न्याय पर भरोसा नहीं है और वह बदला लेने पर आमादा है।’ निजी तौर पर मुझे लगता है कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने जो सवाल उठाए हैं, वे जायज हैं। पुलिस को अदालत में यह साबित करना होगा कि यह मुठभेड़ थी या गोलीबारी। फिलहाल, जनभावनाएं बिल्कुल अलग हैं। जो लोग नर्सरी के बच्चों के यौन शोषण के लिए अक्षय शिंदे को फांसी देने की मांग कर रहे हैं, वे नतीजे से खुश हैं। यह सही है कि कानून की अदालत को जनभावनाओं से प्रभावित नहीं होना चाहिए, लेकिन राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए ऐसा कर रहे हैं। विपक्षी नेता लोगों को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि भाजपा समर्थक को बचाने के लिए गोलीबारी की गई, लेकिन फिर भी वही नेता मुठभेड़ का विरोध नहीं कर रहे हैं। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री फडणवीस के समर्थक खुलकर जनभावनाओं के साथ हैं। वे लोगों को साफ तौर पर यह संदेश दे रहे हैं कि ‘बदला ले लिया गया है।’ नैतिक दृष्टि से देखा जाए तो सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के रुख पर सवाल उठ रहे हैं। मामला अब हाईकोर्ट में है। हम सभी को कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए। फिलहाल, महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए दोनों ही खेमों में तलवारें खिंची हुई हैं।
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