
सभी उम्र के लोगों के लिए श्रम बल की भागीदारी दर 39.6% थी। प्रतिनिधि फ़ाइल अंजीर। | फोटो क्रेडिट: रिटर्स
शहरी बेरोजगारी का परिचय
देश के शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर आंकड़े और कार्यक्रम मंत्रालय और 15 वर्ष की आयु, दिसंबर की उम्र और दिसंबर 2024 से दिसंबर की उम्र, नई दिल्ली मंगलवार (18 फरवरी, 2025) द्वारा जारी की गई थी। पुरुषों के लिए, समाप्ति के दौरान बेरोजगारी दर 5.8% थी, जबकि महिला महिला के लिए 8.1% थी।
पिछले साल, इसी तिमाही के दौरान, बेरोजगारी दर 6.5% थी, जबकि जुलाई 2024 दरों में 6.4% तक। पिछले साल, महिला बेरोजगारी दर 8.6%थी।
राज्य हिमाचल प्रदेश के 10.4% के साथ उच्चतम बेरोजगारी दर थी और 10.4% के साथ हुई और गुजरात के साथ सबसे कम थी। हिमाचल प्रदेश में महंगी बेरोजगारी की लागत भी 24% और सबसे कम दिल्ली में 1.3% थी। पीएलएफ श्रम बल में श्रम बल (CWW) में श्रम बल में बेरोजगार व्यक्ति के प्रतिशत के रूप में बेरोजगारों की दर को परिभाषित करता है – एक सप्ताह में नियोक्ताओं या बेरोजगारों की संख्या।
श्रम बल भागीदारी दर (LFRP), श्रम बल में जनसंख्या सभी उम्र के लोगों के लिए 39.6% थी। यह पिछले साल इसी तिमाही में 39.2% था। महिलाओं के लिए महिलाओं के लिए LFPRY के 5.9% की तुलना में बढ़ा है। हालांकि, LFPR पिछली तिमाही के 20.3% तक कम हो गया। सभी लोगों और महिलाओं के लिए सबसे कम एल्फ्रेस क्रमशः 30.7% और 9.9% के लिए सबसे कम है। 45,70,70,487 में पीएलएफ को 1,70,487 लोगों में किया गया था।
हाल के आंकड़े और विश्लेषण
भारत में शहरी बेरोजगारी दर के हाल के आंकड़े काफी महत्वपूर्ण हैं, जो देश के आर्थिक स्वास्थ्य को प्रदर्शित करते हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO), केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, हाल के वर्षों में शहरी बेरोजगारी दर में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तनों का अनुभव किया गया है। इन आंकड़ों का विस्तृत विश्लेषण हमें यह समझने में मदद करता है कि आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के प्रयास कैसे हो रहे हैं।
15 अक्टूबर और 2023 में शहरी क्षेत्रों में कार्यकर्ता आबादी का अनुपात 46.6% बढ़कर 47.2% हो गया। अक्टूबर, 2023, 2024 से 70.9 अक्टूबर, 20.8 अक्टूबर को 15 अक्टूबर को 20 अक्टूबर की आयु के लिए शहरी क्षेत्र।
मजदूरों को स्व-नियोजित, नियमित वेतन / वेतन श्रमिकों और सरल श्रम में तीन विशाल श्रेणियों में उनकी स्थिति के खिलाफ वर्गीकृत किया जाता है। स्व-नियोजित की श्रेणी के भीतर, दो उपश्रेणियों को घरेलू उद्यमियों के मालिक के लिए उनके खाता कर्मचारियों और मालिकों के एक जादूगर के रूप में एकत्र किया गया है। इन श्रेणियों में, 39.9% स्व-रोजगार प्राप्त हुए, 49.4% नियमित कर्मचारी थे और 10.7% आम मजदूर थे। 5.5% मजदूर कृषि संप्रदाय में थे, जिसमें 31.8% मजदूर शामिल थे, और 62.7% सेवा क्षेत्र सहित तीसरे क्षेत्र में थे।
हाल के आंकड़े और विश्लेषण
भारत में शहरी बेरोजगारी दर के हाल के आंकड़े काफी महत्वपूर्ण हैं, जो देश के आर्थिक स्वास्थ्य को प्रदर्शित करते हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO), केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, हाल के वर्षों में शहरी बेरोजगारी दर में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तनों का अनुभव किया गया है। इन आंकड़ों का विस्तृत विश्लेषण हमें यह समझने में मदद करता है कि आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के प्रयास कैसे हो रहे हैं।
सामाजिक अस्थिरता भी बेरोजगारी का एक महत्वपूर्ण पहलू है। जब व्यक्तियों के पास काम नहीं होता तो यह उनकी सामाजिक स्थिति को कमजोर करता है। बेरोजगार लोग अक्सर असंतोष और निराशा का सामना करते हैं, जो सामाजिक तनाव और अपराध की दर में वृद्धि कर सकता है। एक अध्ययन के अनुसार, जिन क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर अधिक होती है, वहां सामाजिक संघर्षों और असमानताओं में वृद्धि देखी गई है। उदाहरण के लिए, शहरी बस्तियों में बेरोजगारी के उच्च स्तर ने नस्लीय और आर्थिक असमानताओं को बढ़ावा दिया है।
इसके अलावा, बेरोजगारी का मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। शोध दर्शाते हैं कि लंबे समय तक बेरोजगारी का सामना करने वाले व्यक्तियों में अवसाद, चिंता और आत्महत्या की प्रवृत्तियाँ बढ़ जाती हैं। बिना काम के रहने से व्यक्ति में आत्म-सम्मान का स्तर गिरता है, जो जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। इस प्रकार, बेरोजगारी न केवल आर्थिक पहलुओं को प्रभावित करती है, बल्कि समाज में सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं को भी जन्म देती है, जो एक व्यापक चिंता का विषय है।
शहरी बेरोजगारी के कारण
शहरी रोजगार बाजार में बेरोजगारी की वृद्धि के पीछे कई जटिल कारण हैं। सबसे पहले, आर्थिक मंदी को देखा जा सकता है। जब अर्थव्यवस्था सुस्त होती है, कंपनियों की लाभप्रदता में गिरावट आती है, जिससे न केवल नए पदों की सृष्टि रुक जाती है, बल्कि मौजूदा पदों की भी कटौती होती है। यह क्रियाकलाप सीधे तौर पर शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर को प्रभावित करता है, क्योंकि अधिकांश औद्योगिक गतिविधियाँ इन क्षेत्रों में केंद्रित होती हैं।
इसके अतिरिक्त, बेरोजगारी का मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। नौकरी की कमी से तनाव, चिंता और डिप्रेशन जैसे मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ सकते हैं। वास्तविकता यह है कि लंबे समय तक बेरोजगार रहने की स्थिति व्यक्ति के आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास को कमजोर कर सकती है, जिससे व्यक्ति अपने सामाजिक जीवन से भी कट सकता है। इस प्रकार, मानसिक स्वास्थ्य और बेरोजगारी के बीच एक घातक चक्र उत्पन्न होता है, जिसमें एक समस्या दूसरी को जन्म देती है।
समाधान और नीति सुझाव
शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर को कम करने के लिए कई उपाय और नीति सुझाव आवश्यक हैं। सबसे पहले, सरकार को मौजूदा कौशल विकास कार्यक्रमों को मजबूत करने की दिशा में काम करना चाहिए। भारत में विभिन्न सरकारी योजनाएँ उनके कौशल सेट में सुधार लाने के लिए कार्यरत हैं, जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना। इस प्रकार के योजनाओं के माध्यम से शहरी युवाओं को तकनीकी और व्यावसायिक कौशल देने पर जोर देना चाहिए, जिससे उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अधिक अवसर मिल सकें।
इसके अलावा, कृषि से औद्योगिकीकरण का परिवर्तन भी एक महत्वपूर्ण कारक है। जब देश औद्योगिक विकास की ओर बढ़ता है, तो यह आवश्यक है कि किसानों और कृषि श्रमिकों को शुरुआती चरण में औद्योगिक कौशल प्रदान किए जाएं। यदि ऐसा नहीं होता है, तो कृषि क्षेत्र से उद्योग में स्थानांतरित होने वाले श्रमिकों के लिए नौकरी के अवसर कम हो जाते हैं, जिससे शहरी बेरोजगारी दर में वृद्धि होती है। अंत में, शिक्षा की असमानता भी एक प्रमुख कारक है।
सभी शहरी निवासियों को समान रूप से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध नहीं होती। यह असमानता कौशल विकास की कमी को जन्म देती है, जिससे व्यक्ति अपनी क्षमताओं का सही उपयोग नहीं कर पाते हैं। इस कारण उन लोगों को रोजगार मिलने में कठिनाई होती है, जो योग्य और कुशल हैं। इस प्रकार, शहरी बेरोजगारी के विभिन्न कारणों का मिलाजुला प्रभाव है, जो समस्या को गहरा बनाता है।
दूसरा उपाय कौशल विकास कार्यक्रमों का कार्यान्वयन है। योग्य कार्यबल का निर्माण जरूरी है, ताकि युवा और पेशेवर आवश्यक कौशल प्राप्त कर सकें। ऐसे कार्यक्रम स्थानीय उद्योगों और व्यवसायों के साथ सहयोग से स्थापित किए जा सकते हैं, जिससे प्रशिक्षण का अनुभव सीधे रोजगार से जुड़ सके। यह न केवल बेरोजगारी को कम करने में मदद करेगा, बल्कि शहरी क्षेत्रों में आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहित करेगा। सरकारी नीतियों का अनुकूलन भी इस समस्या के समाधान में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
नीति निर्माताओं को ऐसे उपायों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो श्रम बाजार में बड़े बदलाव लाने में सहायक हों। उदाहरण के लिए, श्रम कानूनों में सुधार और नई व्यवसायों के लिए अनुदान और ऋण की उपलब्धता से स्थानीय व्यापार को बढ़ावा मिल सकता है। इसके अतिरिक्त, छोटे और मध्यम उद्यमों को प्रोत्साहित करना, बेरोजगारी को कम करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इन उपायों के समुचित कार्यान्वयन से शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर में कमी लाना संभव है। यह संपूर्ण आर्थिक विकास की दिशा में एक ठोस कदम होगा, जो कि रोजगार निर्माण और सामाजिक स्थिरता में सहायक सिद्ध होगा।